उम्मीद!
- अपर्णा झा
- May 15, 2022
- 1 min read
Updated: Aug 16, 2022
–अपर्णा झा
एक नई उम्मीद से जागी है
इस खुले आसमान के नीचे
इन नये से चेहरों के संग
एक नई उम्मीद से जागी है
मानो ये दिल आजाद सा हुआ है
मानो ये जहां मेरा आबाद सा हुआ है
फिर से ये सांसे जैसे खुशियों की राह पर भागी है
एक नई उम्मीद से जागी
लिखना छोड़ दिया था मैंने
जैसे लफ्जों से फासले बढ से गए थे
फिर भी यहां खड़ी अपनी दास्तां सुना रही, शायद अल्फाजों से अब भी रिश्ता बाकी है
एक नई उम्मीद से जागी है
शब्दों से दोस्ती करना सीखा ही नहीं हमने
इंसानों के पीछे ही कायल हुए हैं
एक बार साथ मांगना इन लफ्ज़ों का फिर कलम उठ सके इनके लिए उतनी मोहब्बत ही काफी है
एक नई उम्मीद से जागी है
सपनों का सच होना भी एक सपना लगता है
पर हालातों से हारकर उन्हें तोड़ा नहीं जाता
फिर से उन सपनों को मंजिल बना लिया है आखिर वो हि तो इस जिंदगी कहे जाने वाले सफर के राही हैं
एक नई उम्मीद से जागी है
न जाने किस मोहब्बत की दरकार थी
किस की छांव तले मैंने बसेरा ढूंढा
लेकिन फिर जब इस आसमा की ओर देखा तो एहसास किया अभी तो ऊंची उड़ान बाकी है
एक नई उम्मीद से जागी है
ये कदम अब मंजिल की ओर चल पड़े हैं
इन्हें पीछे मुड़ना अब मंजूर सा नहीं
फिर से नए अरमान जागे हैं मानो ये दिल अपने सपनों का अनुरागी है
एक नई उम्मीद से जागी है
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